लखनऊ। सआदतगंज स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में चल रहे सिद्धचक्र महामण्डल विधान के चौथे दिन परम पूज्य क्षुल्लक रत्न श्री 105 विगुण सागर महाराज ने प्रभु की भक्ति और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये उपस्थित भक्तों को उपदेश दिया। भक्तजनों को बताया कि लक्ष्मी कि प्राप्ति प्रभु कि भक्ति और गुरु सेवा से प्राप्त होती है। इसलिये जब समय मिले प्रभु और गुरूओं की सेवा में लग जाओं। उन्होंने कहा कि आज लोग लक्ष्मी यानी धन की प्रात्ति के लिये पता नहीं कितने जतन करते है।
प्रभु की भक्ति और गुरु की सेवा लक्ष्मी की होती है प्राप्ति
दिनभर उसे पाने के लिये भागते रहते है। जबकि लोगों को पता ही नहीं कि लक्ष्मी कहां निवास करती है,वह तो भगवान और ईश्वर की भक्ति में लीन संतो में निवास करती है, जो भी इनकी भक्ती करता है, लक्ष्मी खुद उनके पीछे-पीछे चलती है,और जो इनसे दूर भागता है, लक्ष्मी उससे उतना ही दूर भागती है। अगर आपको लक्ष्मी कि प्राप्ति करनी है तो भगवान और सतों का अनुसरण करो। लोक परमपरा में भी कहा जाता है कि लक्ष्मी विष्णु कि पत्नी है और विष्णु एक देव है। जो भी प्राणी उसकी आरधना करता हैं तो उसके पास लक्ष्मी अपने आप प्रकट हो जाती है। विधान का संचालन बाह्मचारणी सुची दीदी ने किया।