Sunday, June 1, 2025
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    महाकाल का उज्जैन पृथ्वी का है केंद्र बिंदु,दर्शन मात्र से ही होती  है मोक्ष की प्राप्ति

    लखनऊ। मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू,भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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    ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया। इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

    उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का पौराणिक महत्व भी है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी। जिसके बाद भक्तों के निवेदन के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है।

    धार्मिक नगरी उज्जैन पूरी दुनिया में काफी मशहूर है।  इसके अलावा हर 12 साल में कुंभ मेले का भी आयोजन किया जाता है जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। कालों के काल बाबा महाकाल के इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। भगवान शिव के इस स्वरूप का वर्णन शिव पुराण में भी विस्तार से मिलता है।

    पृथ्वी का केंद्र बिंदु है उज्जैन

    हम सभी ने बचपन से पढ़ा है कि हमारी पृथ्वी गोलाकार है, लेकिन जब भी बात इसके केंद्र बिंदु की आती है, तो लोग अक्सर सोच में पड़ जाते हैं। ऐसे में अगर हम आपसे यह कहे कि मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु है। खगोल शास्त्रियों के मुताबिक मध्य प्रदेश का यह प्राचीन शहर धरती और आकाश के बीच में स्थित है। यहां तक कि शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा बताया गया है।

    दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकाल

    उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का पौराणिक महत्व भी है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के निवेदन के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है। इसकी खास बात यह है कि यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है।
    यही वजह है कि तंत्र साधना के लिहाज से इसे काफी अहम माना जाता है, क्योंकि तंत्र साधना के लिए दक्षिणमुखी होना जरूरी है। इस मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। साथ ही पुराणों में भी ऐसा कहा गया है कि उज्जैन की स्थापना खुद ब्रह्माजी ने की थी। यह भी मान्यता है कि महाकाल के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

    इन नामों से भी जाना जाता है उज्जैन

    क्षिप्रा नदी के तट पर बसे होने की वजह से इस शहर को शिप्रा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यह प्राचीन नगरी संस्कृत के महान कवि कालिदास की नगरी के नाम से भी काफी प्रचलित है। वहीं, बात करें इसके प्राचीन नामों की, तो उज्जैन को पहले अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा के नाम से भी जाना जाता था।

    यह मध्य प्रदेश के पांचवें सबसे बड़े शहरों में से है, जो अपनी धार्मिक मान्यातों के चलते दुनियाभर में पर्यटन का प्रमुख स्थल है। महाकालेश्वर मंदिर के अलावा यहां गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, गोपाल मंदिर, मंगलनाथ मंदिर,काल भैरव मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है।

     भस्म आरती का रहस्य

    भस्म आरती का रहस्य है कि भस्म को देह के अंतिम सत्य के रूप में देखा जाता है,साथ ही भस्म से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। महाकाल की भस्म आरती सुबह 4 बजे की जाती है। भस्म को सूती कपड़े में बांधकर शिवलिंग पर बिखेरा जाता है। भस्म आरती के दौरान महिलाओं को घूंघट करना होता है।भस्म आरती के लिए अलग से रजिस्ट्रेशन कराना होता है। भस्म आरती में गाय के गोबर, अमलतास, पीपल, बड़, और बेर की लकड़ियों को जलाकर बनाई गई राख का इस्तेमाल किया जाता है।

    पौराणिक कथा के मुताबिक, दूषण नाम के राक्षस ने उज्जैन में तबाही मचा दी थी। लोगों ने भगवान शिव से इस प्रकोप को दूर करने की विनती की। भगवान शिव ने दूषण का वध किया और उज्जैन में ही महाकाल के रूप में बस गए। मान्यता है कि भगवान शिव ने दूषण के भस्म से अपना श्रृंगार किया था।

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