जयपुर। इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन (आईएसए) ने पूरे देश में “ब्रेन स्ट्रोक–टाइम टू एक्ट” जागरूकता अभियान की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य लोगों में स्ट्रोक के लक्षण पहचानने और समय पर इलाज की अहमियत के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।
विशेषज्ञों के अनुसार, स्ट्रोक के मामले में इलाज के लिए चार से पांच घंटे की ‘गोल्डन विंडो’ सबसे महत्वपूर्ण होती है, जिसमें त्वरित उपचार से मरीज के बचने और पूरी तरह ठीक होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
जयपुर में अभियान के तहत आईएसए ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस (एपीआई, जयपुर चैप्टर) और सोसाइटी फ़ॉर इमरजेंसी मेडिसिन इंडिया (एसईएमआई) के साथ मिलकर पब्लिक एजुकेशन सेशन्स, वर्कशॉप और कंटीन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन (सीएमई) कार्यक्रम आयोजित किए।
इनका मकसद डॉक्टरों और इमरजेंसी रिस्पॉन्डर्स को स्ट्रोक की पहचान और त्वरित उपचार के तरीकों की ट्रेनिंग देना है। ऐसे ही कार्यक्रम देशभर के अन्य शहरों में भी आयोजित किए जाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि सही जागरूकता और समय पर इलाज से 80 प्रतिशत स्ट्रोक मामलों को रोका जा सकता है।
आईएसए की अध्यक्ष डॉ. पी. विजया ने बताया कि स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है और यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। सबसे आम प्रकार ब्लड क्लॉट के कारण होता है, जिसका इलाज “आईवी थ्रोम्बोलाइसिस” नामक इंजेक्शन थेरेपी से किया जाता है, जो थक्का घोल देती है।
जागरूकता की कमी
लेकिन भारत में केवल 100 में से 1 मरीज को ही समय पर यह इलाज मिल पाता है, जिसका बड़ा कारण जागरूकता की कमी है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य स्थानीय डॉक्टरों और इमरजेंसी स्टाफ को इस तरह प्रशिक्षित करना है कि वे पहले घंटे में ही इलाज शुरू कर सकें। टाइम इज ब्रेन – हर मिनट कीमती है।”
आईएसए के सचिव डॉ. अरविंद शर्मा ने कहा, “स्ट्रोक अचानक होता है और हर मिनट की देरी स्थायी नुकसान या मौत का कारण बन सकती है। यह केवल मेडिकल जानकारी फैलाने का अभियान नहीं, बल्कि जीवन बचाने का प्रयास है।”