लखनऊ। मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान कालभैरव का मंदिर मुख्य शहर से कुछ दूरी पर स्थित है। यह स्थान भैरवगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है, जिसके चारों ओर परकोटा (दीवार) बनी हुई है।
कालभैरव मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही कुछ दूर चलकर बांई ओर पातालभैरवी का स्थान है। इसके चारों ओर दीवार है। इसके अंदर जाने का रास्ता बहुत ही संकरा है। करीब 10-12 सीढिय़ां नीचे उतरने के बाद तलघर आता है। तलघर की दीवार पर पाताल भैरवी की प्रतिमा अंकित है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की इमारत का जीर्णोद्धार करीब एक हजार साल पहले परमार कालीन राजाओं ने करवाया था।
इस मंदिर में भगवान कालभैरव के वैष्णव स्वरूप का पूजन किया जाता है। इस मंदिर से जुड़ी अनेक किवंदतियां भी प्रचलित हैं। जिनके अनुसार उज्जैन के राजा भगवान महाकाल ने ही कालभैरव को इस स्थान पर शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया है। इसलिए कालभैरव को शहर का कोतवाल भी कहा जाता है।
कालभैरव मंदिर से कुछ दूरी पर विक्रांत भैरव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर तांत्रिकों के लिए बहुत ही विशेष है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर की गई तंत्र क्रिया कभी असफल नहीं होती। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। विक्रांत भैरव के समीप ही श्मशान भी है। श्मशान और नदी का किनारा होने से यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं।
इस मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। इस संबंध में मान्यता है कि करीब 400 साल पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी।
तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की। इसके बाद राजा ने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और लंबे समय तक कुशल शासन किया। भगवान कालभैरव के आशीर्वाद से उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई युद्ध नहीं हारा। इसी प्रसंग के बाद से आज भी ग्वालियर के राजघराने से ही कालभैरव के लिए पगड़ी आती है।
उज्जैन में कौन से भैरव हैं
काल भैरव आठ भैरवों की पूजा साईवती परंपरा का एक हिस्सा है और उनमें से प्रमुख काल भैरव हैं। माना जाता है कि यह राजा भद्रसेन द्वारा शिप्रा के तट पर बनाया गया था। स्कंद पुराण के अवंति खंड में एक काल भैरव मंदिर का उल्लेख है। माना जाता है कि काल भैरव की पूजा कपालिका और अघोरा संप्रदाय का हिस्सा रही है।
उज्जैन इन दोनों संप्रदायों का एक प्रमुख केंद्र था। आज भी, काल भैरव को अनुष्ठान के एक भाग के रूप में शराब की पेशकश की जाती है मालवा शैली में सुंदर चित्र एक बार मंदिर की दीवारों को सजाते हैं, जिनमें से केवल निशान दिखाई देते हैं।
असल में काल भैरव के मंदिर में शराब चढ़ाना संकल्प और शक्ति का प्रतीक माना गया है। इसलिए लोग यहां मदिरा चढ़ाते हैं। इस मंदिर में रोजाना करीब 2000 बोतल शराब का भोग भगवान को लगाया जाता है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।
मान्यता है कि भगवान कालभैरव भगवान शिव उग्र अवतार हैं और ये बुराई का विनाश करते हैं। उज्जैन के कालभैरव मंदिर के संबंध में एक चमत्कारी बात भी सामने आती है कि यहां स्थित भगवान कालभैरव की प्रतिमा मदिरा यानी शराब का सेवन करती है, यहां आकर लोग भगवान काल भैरव को मदिरा का भोग लगाते हैं और वे मदिरा मूर्ति के मुख में जाती भी है। लेकिन ये मदिरा कालभैरव की मूर्ति से कहां जाती है ये रहस्य आज भी बना हुआ है।
प्रतिमा को मदिरा पीते हुए देखने के लिए देश-दुनिया से रोज हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। पुरातत्व विभाग और वैज्ञानिक इस राज का पता लगाने में असफल रहे हैं। लिहाजा यह रहस्य अब भी अनसुलझा है कि मूर्ति में प्रवेश करने वाली शराब कहां जाती है। इसके अलावा एक ऐसी भी मान्यता है कि काल भैरव के मंदिर में रविवार के दिन मदिरा चढ़ाने से व्यक्ति सभी प्रकार के ग्रह दोष से मुक्त हो जाता है।
इसलिए यहां कालसर्प दोष, अकाल मृत्यु और पितृदोष जैसे खतरनाक दोषों का भी निवारण किया जाता है। । मंदिर के बाहर हर तरह में ब्रांड की महंगी से महंगी शराब मिलती है। यहां शराब प्रशासन की अनुमति से बेची जाती है। मंदिर के बाहर आबकारी विभाग का भी काउंटर है, जहां महिला और पुरुष की अलग-अलग कतारें लगती हैं।
काल भैरव मंदिर का पौराणिक महत्व
एक बार एक पर्वत पर ब्रह्मा, विष्णु महेश बैठ कर चर्चा कर रहे थे। इस बीच ये सवाल उठा कि इस संसार का सबसे बड़ा देव कौन है। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि सृष्टि की उतपत्ति मैनें की है इसलिए मैं बड़ा हूं तो विष्णु जी बोले कि मैं पालनहारी हूं, इसलिए मैं बड़ा हूं। दोनों की बात सुनकर भगवान शिव ने कहा कि मैं संघारकर्ता हूं इसलिए सबसे बड़ा देव में हूं। तीनों की चर्चा का जब कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो भगवान अपने-अपने लोक चले गए।
इसके बाद ब्रह्मा जी के 5 मुख थे तो उन्होंने 4 से चार वेदों की रचना कर दी। लेकिन वे पांचवे मुख से भी वे एक और रचना करना चाहते थे। जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने ऐसा करने से ब्रह्मादेव को मना किया लेकिन ब्रह्मा नहीं माने और पांचवे मुख से रचना करने की जिद करने लगे।
इस बात भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। नेत्र की ज्याोति से एक 5 साल के बालक प्रकट हुए। जिन्हें बटुक भैरव कहा गया। बटुक भैरव ब्रह्मा जी को मनाने गए। लेकिन ब्रह्मा जी की जिद और वे बटुक भैरव को बालक समझ कर उसका तिरस्कार कर बैठे, जिससे बटुक भैरव को क्रोध आया और वे 5 साल की उम्र में ही मदिरा पान कर लिए।
जिन्हें आज श्री काल भैरव जी महाराज कहा जाता है, बटुक भैरव मदिरा का पान करने के बाद क्रोध में आकर कालभैरव का रूप धारण कर लिए और ब्रह्मा जी के पांचवे मुख का तीक्ष्ण उंगली से छेदन कर दिए। जिससे काल भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष लग गया।
इसके बाद बटुक शिव के पास गए और उस दोष के निवारण हेतु उचित मार्ग बताने को कहा। इस पर शिव ने उन्हें भ्रमण करने को कहा और इस दौरान कालभैरव उज्जैनी अवन्तिक नगरी में शिप्रा स्नान कर महाकाल वन में दर्शन कर पर्वत पर तपस्या करन लगे। इस तपस्या के बाद भैरव को ब्रह्मा हत्या के दोष से मुक्ति मिल गई और ये जगह भैरव पर्वत के नाम से ही जानी जाने लगी।