लखनऊ। राजस्थान के जिला-सीकर में स्थित श्री दिगंबर जैन भव्योदय अतिशय क्षेत्र रैवासा दैवीय चमत्कारों से भरा है। यह स्थान अनादिनिधन प्रवाहमान दिगम्बर जैन धर्म की संस्कृति भारतवर्ष की सर्वोच्च एवं आदर्श संस्कृति रही है जो अपने सद्आचार विचारों के माध्यम से जनमानुष को सम्यक्मार्ग का दिग्दर्शन कराती रही है।
भव्योदय अतिशय क्षेत्र रैवासा
राजस्थान के मरूवृन्दावन सीकर नगरी के निकट अरावली पर्वत की श्रृंखला की तलहटी में अपनी भव्यता एवं ऐतिहासिकता को संजोये हुए श्री दिगम्बर जैन भव्योदय अतिशय क्षेत्र रैवासा विद्यमान है। रेवासा वाले बाबा श्री सुमतिनाथ जी का चमत्कारी रहस्य स्वस्त श्री दिगम्बर जैन भव्योदय अतिशय क्षेत्र रेवासा सीकर में फाल्गुन शुक्ला तीज बीर निर्माण सम्वत् 2474 की शुभ बेला में सुदर्शन नामक व्यक्ति को यक्ष द्वारा स्वप्न देकर मंदिर के बाहर अग्नि कोण के भूगर्भ से रेवासा वाले बाबा सुमतिनाथ भगवान की यह प्रतिमा प्रकट हुई थी। उस स्थल पर विशाल रूप में चरण छत्री की स्थापना की गई।
रात को घुँघरू बाजे की आवाज
इसके अतिशय की चर्चा चारों ओर फैलने लगी। कहते हैं कि इस मंदिर में रात को देवतागण आते हैं जिनके वादायगी और नूपुरों को आवाज बहुत लोगों ने सुनी। चौकीदार भी बताते है कि रात को घुँघरू बाजे की आवाज बहुत बार सुनाई देती है। जबकि इस मंदिर के भीतर कोई नहीं सोता है। लोग कहते हैं कि एक बार चौकीदार रात को मंदिर में चटाई बिछाकर सो गया था। जब वह सुबह उठता है तो देखता है कि वह मंदिर के नीचे खटिया पर सोचा हुवा है। यह कैसे हुआ सुबह उसने गाँव वालों को यह बात बताई। दूसरे दिन जब व मंदिर से बाहर सोया हुआ था, तो उसे लगा कि उससे कोई कह रहा है कि अब कभी भीतर मत सोना।
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संकट से मुक्ति को प्राप्त हो जाते हैं।
आध्यात्मिक संत मुनि पुंगव श्री सुधासगर जी महाराज ने सम्पूर्ण क्षेत्र के वास्तु दोष हटा कर जीर्णोद्वार की प्रेरणा दी तथा रेवासा बाले वावा को योग्य उच्च रथान पर विराजमान करवाया। मुनि श्री ने कहा की सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा जी महा अतिशयकारी चिन्तामणि है। चमत्कारी संकटमोचक, सर्वसिद्धिदायक है। हजारों-लाखों बाबा की भक्ति से मुक्त हो गये। गरीब धन धान्य से भर गये।असाध्य रोग खत्म हो गये। मुनि पुंगव श्री कहते है की बाबा सुमतिनाथ का जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से अभिषेक, पूजन आरती एवं दीप-छत्र चढ़ाकर बाबा के समक्ष बैठकर चालिसा का पाठ करते हैं एवं सर्वसिद्धिदायक बाबा के मंत्र का जाप करते हैं वे व्यक्ति मनबाछिंत फल प्राप्त कर सब संकट से मुक्ति को प्राप्त हो जाते हैं। हो गये हैं। हो रहे हैं।
इच्छित सुख को प्राप्त कर सकट मुक्त हो जाता है
बाबा सुमतिनाथ व्रत बाबा का व्रत करने वाले श्रद्धालु श्रावक पांच वर्ष तक प्रति वर्ष फाल्गुन शुक्ला तीज को उपवास कर अथवा यथाशक्ति एकासन पूर्वक व्रत करें उस । कर चालिसे का पाठ करें तथा सर्व सिद्धिदाय दिन बाबा का अभिषेक पूजन आदि देदायक बाबा के मंत्र का जाप करें पांच वर्ष नार व्रत पूर्ण होने पर बाबा के समक्ष शांति विधान कर छत्र चढ़ाकर क्षेत्र को यथाशक्ति तान देकर उद्यापन करें।इस वत वत को जो करता है वह इच्छित सुख को प्राप्त कर सकट मुक्त हो जाता है।
सर्व सिद्धिदायक बाबा का जाप मंत्र
ॐॐहीं श्रीं क्लीम् ऐं अर्ह श्री सुमतिनाथाय नमः । आप भी ययाशक्ति बाबा की भक्तिकर बाबी के अतिशय का लाभ लीजिये प्रत्येक दर्शनार्थी श्रावक बाबा के दर्शन के बाद बाबा के समय बैठकर बाबा के चालिसा का पाठ करें तथा बाबा के मंत्र का एक जाप अवश्य करे एवं दया शक्ति दीप अथवा छत्र चढ़ाकर दान देकर समतिशय पुण्यार्जन कर जीवन धन्य करे।
सेना को मधुमक्खियों ने घेर लिया
इस तरह यहाँ कई अतिशयपूर्ण घटनाएँ हुई हैं। एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने भी इस मंदिर के बारे में सुना और वह इस मंदिर को लूटने के लिये एवं खण्डित करने के लिये सेना के साथ चल पड़ा। औरंगजेब को सेना सहित आता हुआ जानकर श्रावकों ने उसके भय से श्रीजी को तलघर में विराजमान कर दिया लेकिन बादशाह तथा उसकी सेना ज्यों ही मंदिर के निकट पहुँची बादशाह और उसकी सेना को मधुमक्खियों ने घेर लिया तथा उनके शरीर को काटने लगी।
कई चमत्कारपूर्ण घटनाएँ
बादशाह और उसकी सेना पीड़ा से छटपटाने लगीं अतथा भाग खड़ी हुई और इस तरह वह संकट टल गया। कहते हैं कि इस तरह की कई चमत्कारपूर्ण घटनाएँ यहाँ हुई हैं। इस प्राचीन जैन मंदिर की एक विशेषता यह है कि इसमें स्थित खम्भों की गिनती कोई सही ढंग से नहीं कर पाया। वही व्यक्ति एक बार के बाद दोबारा गिनता है तो कम या अधिक गिन लेता है। इस चमत्कार के कारण यह अनगिनत खम्भों वाला मंदिर के नाम से विख्यात रहा है। यहाँ एक और अद्भुत अतिशय हुआ कि चार बार शान्तिनाथ जी की पीतल की प्रतिमा चोर ले गये लेकिन कुछ दिन बाद पुनः वापिस आकर वेदी पर विराजमान हो गये।
साधारण व्यक्ति को इस असाधारण प्रतिमा ने दर्शन दिये
इस प्रकार अतिशयों की श्रृंखला में एक और महान् अतिशय इस प्रकार हुआ। यह पावन पवित्र भूमि सैंकड़ों वर्षों से अपने भूगर्भ में पवित्र तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा को सुरक्षित किये हुए थी। तीर्थंकरों के अवतरण के पूर्व आने का संकट स्वप्न आदि के माध्यम से प्राप्त होता है। इसी नियति के तहत इस अतिशय प्रसूता पावन भूमि से प्रकट होने वाली इस अलौकिक अतिशयकारी जिन प्रतिमा ने भी फाल्गुन शुक्ला दूज वीर निर्वाण संवत् 2474 की रात्रि को ब्रह्ममुहूर्त में सुदर्शन नामक एक साधारण व्यक्ति को इस असाधारण प्रतिमा ने दर्शन दिये तथा स्वप्न में ही यक्ष ने इस व्यक्ति के लिये उस स्थान का भी दिग्दर्शन किया, जिस भूगर्भ में यह प्रतिमा विराजमान थी।
चारों तरफ लोगों में हर्ष की लहर
प्रातःकाल उठकर उस व्यक्ति ने समाज के श्रेष्ठियों को स्वप्न के अलौकिक दृश्य का बखान किया। तद्नुसार उस भूमि की पूजन आदि करके खुदाई शुरू की गई। पाँच सात फीट खोदने के बाद फाल्गुन शुक्ला तीज वीर निर्वाण संवत् 2474 की दोपहर के समय में पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान की मनोहारी प्रतिमा का दर्शन हुआ। चारों तरफ लोगों में हर्ष की लहर फैल गई। हजारों व्यक्ति दर्शन को आने लगे। लेकिन राजकीय सत्ता की प्रतिकूलता के कारण उसका अधिक प्रचार-प्रसार न करके उसे मंदिर की परिक्रमा में स्थित तलघर में विराजमान कर दी गई।
कुछ विशिष्ट व्यक्ति प्रतिदिन एक बार तलघर में जाकर अभिषेक पूजन कर लेते थे। तलघर का बन्दीपना भी प्रतिमा को स्वीकार नहीं था, इसलिये प्रतिमा ने ही अतिशय दिखाया हो, देश की गुलामी की जंजीरे टूटने लगी। 15 अगस्त, 1947 को जैसे ही आजादी का शंखनाद हुआ वैसे ही लोगों ने अपने आराध्य को तलघर से निकालकर मंदिर की वेदी पर विराजमान कर स्वतंत्रतापूर्वक पूजन करने लगे।