Sunday, June 29, 2025
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    राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में संवाद कौशल और तकनीकी हिंदी पर दो कार्यशालाओं का सफल आयोजन

    जयपुर। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (मानद विश्वविद्यालय) में संवाद कौशल और तकनीकी दक्षता पर केंद्रित दो महत्त्वपूर्ण कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। इन कार्यशालाओं का उद्देश्य कर्मचारियों और विद्यार्थियों में कार्यस्थल पर बेहतर संवाद, समन्वय और तकनीकी दक्षता विकसित करना रहा।

    संवाद कौशल पर केंद्रित व्याख्यान एवं संवाद कार्यशाला

    संस्थान के सभागार में कार्यस्थल पर आपसी विवादों से बचाव और समाधान विषय पर आयोजित कार्यशाला में नर्सिंग स्टाफ, इंटर्न्स और विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। मुख्य वक्ता मानव संसाधन विशेषज्ञ रविकांत सैनी ने कार्यस्थल पर संवाद की भूमिका, गलतफहमियों की संभावनाएं और समाधान की व्यावहारिक विधियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संवादहीनता ही अक्सर विवादों का कारण बनती है, जिसे संवेदनशीलता और सकारात्मक दृष्टिकोण से टाला जा सकता है।

    इस अवसर पर शल्यतंत्र विभागाध्यक्ष प्रो. पी. हेमंत कुमार, कुलसचिव प्रो. अनीता शर्मा, चिकित्सालय अधीक्षक प्रो. अनुपम श्रीवास्तव एवं संकाय अध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार भी मंच पर उपस्थित रहे। संकाय अध्यक्ष प्रो. कुमार ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य प्रतिभागियों में प्रभावी संप्रेषण कौशल का विकास करना है। कुल 90 प्रतिभागियों ने कार्यशाला में भाग लिया और इसे अत्यंत उपयोगी बताया।

    हिंदी तकनीकी कार्यशाला – पेपरलेस ऑफिस की दिशा में कदम

    एक अन्य सत्र में मंत्रालयिक कार्मिकों के लिए यूनिकोड सॉफ्टवेयर और मंगल फॉन्ट के प्रयोग पर हिंदी तकनीकी कार्यशाला आयोजित की गई। कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने इसे डिजिटल भारत और पेपरलेस ऑफिस की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि राजभाषा हिंदी को तकनीकी रूप से सशक्त बनाना समय की मांग है।

    उप निदेशक प्रशासन चंद्र शेखर शर्मा ने बताया कि संस्थान में ई-ऑफिस लागू कर दिया गया है, जिससे यूनिकोड सॉफ्टवेयर का प्रशिक्षण और भी आवश्यक हो गया है। इस प्रशिक्षण का व्यावहारिक सत्र सहायक निदेशक राजभाषा राजेश मीणा ने संचालित किया। कार्यशाला में 55 प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए। इस अवसर पर राजभाषा अधिकारी डॉ. राकेश नागर, प्रशासनिक अधिकारी मोहन सिंह मीणा और हिंदी अधिकारी डालचंद उपस्थित रहे।

    इन दोनों कार्यशालाओं ने प्रतिभागियों को न केवल व्यवहारिक ज्ञान से समृद्ध किया, बल्कि संस्थान में दक्ष, संवादशील और तकनीकी रूप से सक्षम कार्य संस्कृति की दिशा में मजबूत आधार भी प्रदान किया।

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