Tuesday, August 19, 2025
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    भगवान महावीर के 2550 वें जन्म कल्याणक महोत्सव को धूमधाम से मनाया गया

    भगवान महावीर के 2550 वें जन्म कल्याणक महोत्सव

    लखनऊ। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर अहिंसा, करुणा और शांति के पथ प्रदर्शक श्री 1008 भगवान महावीर के 2550 वें जन्म कल्याणक महोत्सव पर पूरे भारतवर्ष में जगह-जगह रथ यात्रा निकाली गई।

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    जिसमें जैन समुदाय के लोगों ने भारी संख्या में हिस्सा लिया। राजधानी लखनऊ में भी सआदतगंज, चौक, डालीगंज,गोमती नगर आशियाना समेत इंदिरा नगर में भी रथ यात्रा निकाली गई। उधर सआदतगंज में चूड़ी वाली गली स्थित पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर से रथ यात्रा निकलकर मातादिनरोड, बाबली बाजार, समराही चौकी, बड़ा चौराहा होते हुये वापस मंदिर जी में आकर खत्म हुई।

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    जिसमें भारी संख्या में बच्चों व महिलाओं ने हिस्सा लिया। जिन्होंने भगवान के जन्म दिवस पर खुशियां मनाते हुए नृत्य भी किया। इसके बाद मंदिर जी में ध्वजारोहण के बाद भगवान का प्रक्षाल किया गया। इसके बाद मंदिरजी में ही नाश्ते की व्यवस्था की गई थी। इसी तरह आगरा के सेक्टर 7 ग्रेटर आवास विकास जैन मंदिर से भव्य महावीर जन्म कल्याणक शोभा यात्रा निकली गई।

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    जीवन परिचय

    भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म ईसा पूर्व 599 वर्ष माना जाता है। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं और बचपन में उनका नाम वर्द्धमान था।
    हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म उत्सव जैन अनुयायी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस बार महावीर जयंती  21 अप्रैल को मनाई जाएगी। भगवान महावीर को वर्धमान, वीर, अतिवीर और सन्मति भी कहा जाता है। इन्होंने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। जैन धर्म का समुदाय इस दिन जैन मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करते हैं वहीं इस दिन भव्य जुलूस भी निकाला जाता है। 

     

    कौन कहलाए तीर्थंकर 

    जैन धर्म में तीर्थंकर का अभिप्राय उन 24 दिव्य महापुरुषों से है जिन्होंने अपनी तपस्या से आत्मज्ञान को प्राप्त किया और अपनी इंद्रियों और भावनाओं पर पूरी तरह से विजय प्राप्त की।

    इसलिए नहीं करते वस्त्र धारण

    अपनी तपस्या के दौरान भगवान महावीर ने दिगंबर रहना स्वीकार कर लिया, दिगंबर मुनि आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं इसलिए वस्त्र धारण नहीं करते हैं। जैन मान्यता है कि वस्त्र विकारों को ढकने के लिए होते हैं और जो विकारों से परे हैं, ऐसे मुनि को वस्त्रों की क्या जरूरत है।

    ऐसे मिला केवल ज्ञान

    भगवान महावीर के प्रारम्भिक तीस वर्ष राजसी वैभव एवं विलास के दलदल में कमल के समान रहे। उसके बाद बारह वर्ष घनघोर जंगल में मंगल साधना और आत्म जागृति की आराधना में वे इतने लीन हो गए कि उनके शरीर के कपड़े गिरकर अलग होते गए। भगवान महावीर की बारह वर्ष की मौन तपस्या के बाद उन्हें ‘केवलज्ञान ‘ प्राप्त हुआ । केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद तीस वर्ष तक महावीर ने जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की रचना की।

    महावीर के सिद्धांत

    भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। उनका कहना था कि हम दूसरों के प्रति भी वही व्यवहार व विचार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हों। यही उनका ‘ जीयो और जीने दो ‘ का सिद्धांत है। उन्होंने न केवल इस जगत को मुक्ति का सन्देश दिया, अपितु  मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई। आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे पांच मूलभूत सिद्धांत भी बताए। इन्हीं सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर महावीर ‘ जिन ‘ कहलाए। जिन से ही ‘जैन’ बना है अर्थात जो काम, तृष्णा, इन्द्रिय व भेद जयी है वही जैन है।

    उनकी दृष्टि में हिंसा

    भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया और जितेंद्र कहलाए। उन्होंने शरीर को कष्ट देने को ही हिंसा नहीं माना बल्कि मन, वचन व कर्म से भी किसी को आहत करना उनकी दृष्टि से हिंसा ही है।

    सबको क्षमा करना

    क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- ‘मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्री भाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।

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