नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में चलन में आए बुलडोजर न्याय पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इस पर जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने संपत्तियों को ध्वस्त करने के संबंध में अहम आदेश दिए और कहा कि कार्यपालक अधिकारी न्यायाधीश नहीं हो सकते, वे न तो आरोपी को दोषी करार दे सकते हैं और न ही उसका घर गिरा सकते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति के घर को सिर्फ इसलिए गिरा दिया जाता है क्योंकि वह आरोपी या दोषी है, तो यह पूरी तरह असंवैधानिक होगा। न्यायालय ने इस कार्रवाई के दौरान महिला और बच्चों के अधिकारों की भी रक्षा की, और कहा कि यह उचित नहीं है कि महिलाएं और बच्चे रातभर सड़कों पर रहने के लिए छोड़ दिए जाएं।
दिशा-निर्देशों की मुख्य बातें:
कारण बताओ नोटिस और समय सीमा: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी संपत्ति को गिराने से पहले संबंधित व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए। नोटिस जारी करने के 15 दिन के भीतर कोई भी तोड़फोड़ की कार्रवाई नहीं की जाएगी। अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया का पालन किया जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति बिना सूचना के अपनी संपत्ति को गिरते हुए न देखे।
वीडियोग्राफी की व्यवस्था: पीठ ने यह निर्देश दिया कि जिन संपत्तियों को ध्वस्त किया जाएगा, उनकी वीडियोग्राफी कराई जाए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कार्रवाई पारदर्शी और उचित तरीके से की जा रही है और इसमें कोई अनियमितता न हो।
पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया: उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि कार्यपालक अधिकारियों को न्यायिक कार्य करने का अधिकार नहीं है। सिर्फ अदालतें ही दोषी करार देने और किसी की संपत्ति गिराने का अधिकार रखती हैं। यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई आरोप है, तो उसके घर को गिराने के लिए अदालत से विधिक आदेश की आवश्यकता है।
सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण: न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण हुआ है या यदि अदालत ने विध्वंस का आदेश दिया है, तो इस आदेश में कोई बदलाव नहीं होगा। ऐसे मामलों में सरकार को विधिक कार्रवाई का अधिकार प्राप्त रहेगा।
संविधान और कानूनी सुरक्षा: अदालत ने यह भी कहा कि संविधान और आपराधिक कानून के तहत अभियुक्तों और दोषियों को कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय प्राप्त हैं, और इन अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
समाज में चिंता:बुलडोजर कार्रवाई के मामले में हाल में बढ़ी घटनाओं ने समाज में चिंता उत्पन्न कर दी थी। कुछ जगहों पर बिना उचित प्रक्रिया के ही लोगों के घरों को गिरा दिया गया था, जिससे उनकी जिंदगी प्रभावित हुई। महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था, और यह स्थिति संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर इशारा करती है।
अदालत का दृष्टिकोण:न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने अपने आदेश में यह भी कहा कि महिलाओं और बच्चों के लिए यह बेहद दुखद स्थिति होगी अगर उन्हें सड़कों पर रात बितानी पड़े। अदालत ने यह भी माना कि न्याय का असली उद्देश्य लोगों को अधिकार देना और उनकी रक्षा करना है, न कि उन्हें ऐसे संकटों का सामना करने के लिए छोड़ देना।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बुलडोजर कार्रवाई पर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होगा कि ऐसी कार्रवाइयां पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के तहत और संविधान के अनुसार की जाएं। अब राज्य सरकारों और अन्य संबंधित अधिकारियों को न्यायिक मार्गदर्शन के तहत ही इस तरह की कार्रवाई करनी होगी।
भविष्य में सुधार की उम्मीद:यह आदेश यह दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट मानवाधिकारों और कानूनी सुरक्षा की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। अब उम्मीद जताई जा रही है कि इस फैसले से बुलडोजर कार्रवाई के नाम पर होने वाली गलतियों को रोका जा सकेगा और भविष्य में ऐसी कार्रवाइयां अधिक पारदर्शी और संविधान के अनुरूप होंगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों में राहत का कारण बनेगा, जहां सरकारी कार्रवाई से गरीब और कमजोर वर्ग के लोग प्रभावित हुए हैं। यह कदम देशभर में चल रही बुलडोजर कार्रवाइयों को लेकर जनता के विश्वास को भी मजबूत करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि किसी की संपत्ति गिराने से पहले उसके कानूनी अधिकारों का पूरी तरह से सम्मान किया जाए।