जयपुर। इक्कीसवीं सदी में वैश्विक स्तर पर उभरते नवसाम्राज्यवाद की अदृश्य ताकतों और उनके दृश्यमान प्रभावों को लेकर शनिवार को राजस्थान विश्वविद्यालय में आयोजित एक सिम्पोजियम में विशेषज्ञों ने गंभीर चिंताएं व्यक्त कीं। ‘ग्लोबल डायलॉग फोरम – विश्वम’ और राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम का विषय — ‘इक्कीसवीं सदी में नवसाम्राज्यवाद: इनविजिबल पावर, विजिबल इंपैक्ट’ था।
सिम्पोजियम में बतौर वक्ता शामिल हुए पूर्व राजनयिक गौरी शंकर गुप्ता, इतिहासकार डॉ. आर.एस. खंगारोत और कर्नल अनिल माथुर ने युवाओं का आह्वान किया कि वे नवसाम्राज्यवाद की आधुनिक नीतियों को समझें और उसका मुकाबला नवाचार, सकारात्मक संवाद और डिजिटल सशक्तिकरण से करें।
गौरी शंकर गुप्ता ने कहा कि विश्व बैंक व्यापार समझौते, मानवाधिकार संगठन, पर्यावरण एजेंसियां और डीप स्टेट जैसे माध्यम अब पश्चिमी देशों के नवसाम्राज्यवाद के हथियार बन चुके हैं। अमेरिका और यूरोपीय देश इन संस्थाओं के जरिये विकासशील देशों पर आर्थिक और सांस्कृतिक नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं। उन्होंने इसे अदृश्य साम्राज्यवाद की संज्ञा दी।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां और डिजिटल एप्स नवसाम्राज्यवाद के नए टूल
इतिहासकार डॉ. आरएस खंगारोत ने कहा कि पहले साम्राज्यवाद सीमाओं के विस्तार से जुड़ा था, लेकिन आज शक्तिशाली राष्ट्र, अन्य देशों की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक नीतियों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां और डिजिटल एप्स नवसाम्राज्यवाद के नए टूल बन चुके हैं। खंगारोत ने चीन और भारत के संबंधों पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि दोनों देश मिलकर एक वैश्विक शक्ति बन सकते थे, लेकिन चीन की आंतरिक नीतियों के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका।
कर्नल अनिल माथुर ने युवाओं से अपील की कि वे भारत के लिए सकारात्मक नैरेटिव गढ़ें और वैश्विक मंचों पर देश की मजबूत छवि प्रस्तुत करें। उन्होंने कहा कि आतंकवाद भी अब नवसाम्राज्यवाद का नया टूल बन चुका है, जिसका उपयोग शक्तिशाली देश अपने हितों के लिए करते हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत में ग्लोबल डायलॉग फोरम ‘विश्वम’ के संस्थापक विक्रांत सिंह ने मंच पर संस्था के उद्देश्यों और गतिविधियों की जानकारी दी। इतिहास विभाग की अध्यक्ष डॉ. निकी चतुर्वेदी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। सत्र के अंत में प्रश्नोत्तर कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और चयनित विद्यार्थियों को सम्मानित भी किया गया।
यह सिम्पोजियम आधुनिक विश्व व्यवस्था को समझने, नवसाम्राज्यवाद के बदलते स्वरूप को पहचानने और भारत की भूमिका को पुनः परिभाषित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रहा।