जयपुर। श्रावणी तीज के पावन अवसर पर पिंकसिटी प्रेस क्लब में एक विशेष आयोजन हुआ, जिसमें राजस्थान के वरिष्ठतम पत्रकार प्रवीण चंद्र छाबड़ा के 96वें जन्मदिवस पर उनका सम्मान किया गया। इस मौके पर उनकी बहुचर्चित आत्मचिंतनपरक डायरी “निज से निज को” का भी औपचारिक विमोचन हुआ। कार्यक्रम में पत्रकारिता एवं साहित्य जगत की कई प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित रहीं।
छाबड़ा जी का जीवन स्वयं एक युग – राजेंद्र बोड़ा
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बोड़ा ने कहा की हम आज एक युग के साथ बैठे हैं। प्रवीण जी की जीवन यात्रा केवल पत्रकारिता की नहीं, बल्कि राजस्थान के सामाजिक और राजनीतिक निर्माण की साक्षी है। उन्होंने न सिर्फ राजस्थान की पत्रकारिता को दिशा दी, बल्कि समाज सेवा और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी सक्रिय योगदान दिया। प्रेस क्लब और महावीर कैंसर हॉस्पिटल जैसी संस्थाओं की नींव में भी उनका हाथ रहा है।
पत्रकारिता के पर्याय – नंद भारद्वाज
वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने छाबड़ा जी को पत्रकारिता के पर्याय की संज्ञा देते हुए कहा की वे जनता और सत्ता के बीच सेतु रहे हैं। उन्होंने पत्रकार धर्म को पूरी निष्ठा से निभाया है। उनकी डायरी ‘निज से निज को’ महज एक आत्मकथ्य नहीं, बल्कि जीवन, दर्शन और अध्यात्म का सार है। यह पुस्तक उनके अंतरमन की सच्ची अभिव्यक्ति है, जिसमें उनके जीवन के संघर्ष, मूल्य और मनोभूमि के दर्शन होते हैं।
यह डायरी नहीं, एक शास्त्र है – विजय त्रिवेदी
दिल्ली से विशेष रूप से आए वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने कहा की मैंने प्रवीण जी से चलना सीखा, बोलना और लिखना भी। उनकी डायरी ‘निज से निज को’ में निज जैसा कुछ नहीं है, यह तो सबका है। यह शास्त्र है – अनुभव, ज्ञान और आत्मविवेक का दस्तावेज। इसमें उपनिषदों की सी गंभीरता है।
उन्होंने आज की पत्रकारिता को “भक्ति काल” बताते हुए कहा कि जैसे भक्ति काल के बाद समाज सुधार आंदोलनों का दौर आया था, वैसे ही पत्रकारिता में भी नई जागृति आएगी।
एक सदी की पत्रकारिता जीवंत रूप में हमारे बीच – ओम थानवी
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ओम थानवी ने कहा की आज हम एक सदी के जीवित दस्तावेज के साक्षी हैं। प्रवीण जी ने जिस तरह अपने जीवन को जिया, वह हम सबके लिए प्रेरणा है। आज के दौर में जब पत्रकारों पर राष्ट्रद्रोह जैसे कानून लागू किए जा रहे हैं, तब साहसी पत्रकारिता की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। पत्रकारिता आज दिशाहीन और लगभग दिव्यांग हो चुकी है। ऐसे समय में छाबड़ा जी जैसे उदाहरण नई पीढ़ी को रास्ता दिखा सकते हैं।
समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रवीण चंद्र छाबड़ा ने कहा की उनकी डायरी ‘निज से निज’ में भावुकता नहीं, बल्कि अनुभव की स्पष्टता है। यह आत्मकथ्य मैंने 58 वर्ष की उम्र में लिखा था और अब लगभग 40 वर्ष बाद प्रकाशित हो रहा है। हर पृष्ठ को आत्मीयता से पढ़ा जाए तो यह एक गहरा अनुभव दे सकता है।
कार्यक्रम के अंत में पिंकसिटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष मुकेश मीणा ने सभी अतिथियों और गणमान्यजनों का आभार व्यक्त करते हुए इस ऐतिहासिक आयोजन को प्रेस क्लब के लिए गौरवपूर्ण क्षण बताया।