लखनऊ। शहर के किसी भी सरकारी अस्पताल में प्लास्टिक सर्जन नहीं हैं। ऐसे में यदि कोई भी मरीज गंभीर रूप से जला हो उसको स्किन ड्राफ्टिंग की ज़रूरत हो ,जलने से टेढ़ी हुई उंगली सीढ़ी करनी हों चिपके हुए मांस को अलग करना हो या फिर किसी अंग का पुनर्निमाण करना हो यह सभी काम शहर के सरकारी अस्पतालों में करना संभव नहीं है।
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सिविल अस्पताल के बर्न वार्ड में कुल 31 बेड हैं जिसमे वर्तमान में कुल 13 मरीज भर्ती हैं। अस्पताल के निदेशक डॉ नरेंद्र अग्रवाल के अनुसार उन्होंने 2 से 3 बार प्लास्टिक सर्जन की मांग करते हुए प्रमुख सचिव और महानिदेशक को पत्र लिखा है लेकिन अभी तक सुनवाई नहीं हुई है।
इसके अलावा शहर में बलरामपुर अस्पताल में 11 बेड की बर्न यूनिट है। अस्पताल में पहले डॉ प्रमोद कुमार प्लास्टिक सर्जन थे। वहीं सभी सर्जरी करते थे। उनके बाद डॉ राजीव लोचन ने 2022 तक बर्न यूनिट में सर्जरी की है। डॉ लोचन भले ही प्लास्टिक सर्जन नहीं थे लेकिन उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी से सम्बंधित डिप्लोमा किया था। उनके बाद से जनरल सर्जन ही बर्न यूनिट संभाल रहे हैं।
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रानीलक्ष्मी बाई अस्पताल में तो स्टाफ ही नहीं
राजाजीपुरम के रानीलक्ष्मीबाई अस्पताल में तो बर्न विभाग के लिए कोई स्टाफ ही नहीं है। अस्पताल के ही स्टाफ को ही बर्न विभाग में ड्यूटी के लिए लगाया जाता है। अस्पताल में 6 बेड का बर्न वार्ड है जिसमे फिलहाल 1 मरीज भर्ती है।
क्यों है बड़ा खतरा
दशहरा और दीपावली जैसे पर्व नजदीक है। इन पर्वों में पटाखा फैक्ट्री में आग लगना,रावण दहन के समय आग लगना जैसी घटनायें होती रहती हैं। शहर के किसी भी सरकारी अस्पताल में 50 प्रतिशत से ज्यादा जले मरीज के इलाज की व्यवस्था नहीं है।ऐसे में कोई भी बड़ी दुर्घटना होने पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।