Thursday, July 3, 2025

इस बार द्वापर युग जैसा संयोग कलयुग में

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी,ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन (आइना),जन्माष्टमी बेहद फलदायी,भगवान कृष्ण का जन्म,हिंदुस्तान  

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ,जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥-रसखान

लखनऊ। ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन (आइना) द्वारा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर प्रदेश एवं देशवासियों को बधाई , शुभकामनाएं देते हुए कामना किया है कि यह पावन पर्व हम सभी के जीवन में सुख,शांति और समृद्धि लेकर आए वैसे तो जन्माष्टमी पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन इसबार की जन्माष्टमी बेहद फलदायी है।

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ज्योतिषाचार्य के मुताबिक इस बार जन्माष्टमी पर द्वापर युग जैसा संयोग बना है, इससे पहले ऐसा संयोग दशकों पहले बना था। ज्योतिष शास्त्र गणना के अनुसार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान कृष्ण का जन्म रात्रि के 12 बजे हुआ था और इस बार 6 सितंबर 2023 को भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी मनाई गई इस बार द्वापर युग जैसा संयोग बनने से भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली मानी जा रही है।

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श्रीकृष्ण जितने अलौकिक और विस्मयजनक रूप से विराट हैं वैसे ही सामान्य लोकजीवन में रचे-पगे सरलता और सहजता को स्वीकार करने में भी बेमिसाल हैं। ऐसी विस्तृत व्याप्ति व्यक्तित्व वाला कोई दूसरा लोकनायक दूर-दूर तक नहीं दिखता उनकी विलक्षण लीलाएं लघु और महान की आंख-मिचौली करती हैं जन्म से लेकर बाल्यावस्था, कैशोर्य, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था से होते हुए लीला-संवरण तक का समग्र कृष्ण-चरित अपने भीतर अनगिनत कौतूहलों को सहेजे हुए है।

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इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि यह मोहक रूप परिपूर्णता की कसौटी है। जिस समय समाज में खिंचाव, तनाव व विषयों के भोग का आकर्षण जीवों को अपनी महिमा से गिराते हैं उस समय प्रेमाभक्ति का दान करने वाले तथा जीवन में कदम-कदम पर आनंद बिखेरने वाले श्रीकृष्ण का अवतार होता है श्रीकृष्ण के जन्मदिवस या अवतार ग्रहण करने का पावन दिवस ही जन्माष्टमी कहलाता है ।
बात चाहे रसखान की हो या कामरान की सबका साथ सबका विकास तभी संभव है जब कृष्ण को कृष्ण रहने दिया जाए किसी सियासी दल की जागीर न बनने दिया जाए

सौहार्दपूर्ण कुछ पंक्तियां

‘तू सबका ख़ुदा, सब तुझ पे फ़िदा, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
है कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी.’

सियासी दल मजहब के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकते रहते हैं लेकिन वास्तविकता में हिंदुस्तान की आवाम के बीच धर्म की दीवार कभी आड़े आयी ही नहीं। हमारे लिए राम और रहीम, कृष्ण और करीम सब एक ही हैं। चाहे ईद हो या कृष्ण जन्माष्टमी, हम सब लोग सारे त्योहार एक साथ मिलकर मनाते हैं, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमसे आपसी सौहार्द की सीख ले सके।

सियासत डाल डाल तो कुदरत का इंसाफ पात पात, सियासी रोटियों के लिए राम के नाम पर हमें बांटा जा रहा था लेकिन सियासत समझ ही न सकी हम कृष्ण के नाम पर एक हो गए,
कृष्ण की लीला ऐसी जिससे सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि इस्लाम, ईसाई, जैन, और सिख मजहब के लोग की जुबान पर कृष्ण की लीला का जिक्र आता रहा है और देखा जाए तो कृष्ण गंगा जमुनी तहजीब के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में इस सरजमी पर नजर आते हैं।

अमीर ख़ुसरो, रसखान, नज़ीर अकबराबादी और वाजिद अली शाह ने तो कृष्ण की लीलाओं का बखान करके मज़हब की सारी दीवार गिरा दी और सबको एक ही धागे में पिरो दिया।

रसखान के बाद आज न जाने कितने कामरान इस काम को अंजाम दे रहे है और निदा फ़ाज़ली का ये शेर आज की मज़हबी सियासत को आईना दिखाने के लिए काफ़ी है।

‘फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला.’।

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