Monday, June 16, 2025
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    फेफड़ों की कार्यप्रणाली को जानना आपकी सांस की सुरक्षा के लिए पहला कदम है-प्रो. (डॉ.) वेद प्रकाश

    विश्व सीओपीडी दिवस

    लखनऊ। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) फेफड़ों की एक निरंतर बढ़ने वाली बीमारी है। जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसमें क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और एम्फाइसीमा जैसी स्थितियां शामिल हैं।

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    सीओपीडी वाले लोग अक्सर पुरानी खांसी, सांस की तकलीफ, घरघराहट और सीने में जकड़न जैसे लक्षणों का अनुभव करते हैं। यह बीमारी दैनिक जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती है। अगर ठीक से इसका इलाज न किया जाए तो इसकी गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं। दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और सीओपीडी रोगी समूहों के सहयोग से ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड) द्वारा आयोजित किया जाता है।

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    फेफड़ों की कार्य क्षमता को जानें

    पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश ने बताया की विश्व सीओपीडी दिवस का विषय “अपने फेफड़ों के कार्य क्षमता को जानें” है। इस थीम का उद्देश्य फेफड़ों की कार्यप्रणाली को मापने के महत्व पर प्रकाश डालना है, जिसे स्पाइरोमेट्री भी कहा जाता है। स्पिरोमेट्री एक सरल और प्रारम्भिक परीक्षण है जो यह मापता है कि आप कितनी हवा अंदर ले सकते हैं और बाहर छोड़ सकते हैं। सीओपीडी और फेफड़ों की अन्य स्थितियों के निदान के लिए यह परीक्षण महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे सीओपीडी बढता है।

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    तम्बाकू धूम्रपानः सिगरेट या बीडी प्राथमिक कारण

    लोगों को अपनी सामान्य दैनिक गतिविधियां करने में अक्सर सांस फूलने के कारण अधिक कठिनाई होती है। सीओपीडी के अटैक के समय उन्हें घर पर अतिरिक्त उपचार प्राप्त करने या आपातकालीन देखभाल के लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवष्यकता हो सकती है। गंभीर अटैक जीवन के लिए खतरा हो सकता है। सही समय पर चिकित्सा उपचार पर काफी वित्तीय बोझ काम हो सकता है। सीओपीडी दिवस के अवसर पर रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर (डॉ.) राजेंद्र प्रसाद, पीएमआर विभाग के प्रोफेसर (डॉ.) अनिल गुप्ता और रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रो0आरएएस कुशवाहा सहित प्रतिष्ठित संकाय सदस्यों ने भाग लिया। पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग से डॉ. सचिन कुमार, डॉ. मोहम्मद आरिफ और डॉ. अतुल तिवारी भी उपस्थित थे।

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     भारत में 5.5 करोड़ से अधिक लोग सीओपीडी से पीड़ित

    वैश्विक व्यापकता- वैश्विक स्तर पर अनुमानत वर्ष 2023 तक लगभग 48 करोड़ लोग सीओपीडी से ग्रसित थे। वर्ष 2050 तक इसका प्रसार 23 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, जो संभावित रूप से लगभग 60 करोड़ लोगो तक पहुंच जाएगी। यह वृद्धि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिक रहेगी और विशेषकर पुरुषो की अपेक्षा, महिलाओं को अधिक प्रभावित कर सकती है।
    वैश्विक बोझ- सीओपीडी दुनिया भर में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, जो गैर-संचारी रोगों होने वाली मृत्यु दर में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
    अनुमानित रैंकिंग- वर्ष 2030 तक, बढ़ती आबादी, तंबाकू के बढ़ते उपयोग और पर्यावरण प्रदूषकों के संपर्क के कारण सीओपीडी वैश्विक स्तर पर मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बने रहने की उम्मीद है।
    मृत्यु दर- अनुमान 2019 में, सीओपीडी के कारण दुनिया भर में लगभग 32 लाख मौतें हुईं थी।

    आयु वितरण- सीओपीडी सभी उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है, परन्तु यह वृद्ध आबादी को अधिक रुप से प्रभावित करता है, विशेष रूप से 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में यह बीमारी प्रभावित करती है।
    भारत में 5.5 करोड़ से अधिक लोग सीओपीडी से पीड़ित हैं।

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    सीओपीडी के सामान्य लक्षण

    पुरानी खांसी,सांस लेनेे में तकलीफ,घरघराहट,सीने में जकडन,थकान,बार-बार श्वसन संक्रमण होना,अनपेक्षित वजन घटना,दैनिक क्र्रियाकलाप करने में कठिनाई होना।

    सीओपीडी के कारण

    तम्बाकू धूम्रपानः सिगरेट या बीडी प्राथमिक कारण है।,अप्रत्यक्ष धूम्रपानः धूम्रपान न करने वालों को भी धूम्रपान के संपर्क में आने से सीओपीडी होने का खतरा होता है। व्यावसायिक प्रदूषणः कार्यस्थल के प्रदूषकों और धूल,रसायन और धुएं जैसे उत्तेजक पदार्थों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से सीओपीडी विकसित होने का खतरा बढ सकता है।

    घर के अंदर वायु प्रदूषण: जलाने के लिए बायोमास ईंधन (गोबर के उपले, कोयला, लकड़ी) के उपयोग से घर के अंदर वायु प्रदूषण हो सकता है, जिसमें सीओपीडी का खतरा बढ सकता है।अनुवांशिक (जेनेटिक) कारण: अल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन की कमी एक दुर्लभ आनुवंषिक स्थिति है जो जल्दी सीओपीडी की शुरूआत का कारण बन सकती है। बार-बार श्वसन संक्रमण: बार-बार श्वसन संक्रमण, विषेष रूप से बचपन के दौरान होने वाले संक्रमण जीवन में बाद में सीओपीडी विकसित होने का खतरा बढ सकता है।

    सीओपीडी का उपचार

    ब्रोंकोडाईलेटर्स,इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स,पलमोनरी रिहैबिलिटेषन,ऑक्सीजन थेरेपी,सर्जरी

    फेफड़ों की कार्यप्रणाली को जानना

    शीघ्र पता लगाना- नियमित फेफड़ों के कार्य परीक्षण से सीओपीडी को प्रारंभिक चरण में पकड़ने में मदद मिल सकती है, जब यह सबसे अधिक प्रबंधनीय होता है। बीमारी के पता चलने से शीघ्र समय पर समुचित उपचार किया जा सकता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और रोग की प्रगति धीमी हो सकती है।
    रोग की प्रगति की निगरानी करना– जिन लोगों में पहले से ही सीओपीडी की बीमारी का पता है, उनके लिए नियमित स्पिरोमेट्री परीक्षण रोग की प्रगति और उपचार की प्रभावशीलता की निगरानी करने में मदद कर सकते हैं। देखभाल के बारे यह जानकारी उपयुक्त निर्णय लेने के लिए मदद करती है।

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    फेफड़ों की कार्यप्रणाली को बेहतर

    अच्छी जीवनशैली को अपनाकर अपने फेफड़ों की कार्यप्रणाली को बेहतर किया जा सकता है। यदि आपके फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो रही है, तो यह आपको धूम्रपान छोड़ने, फुफ्फुसीय पुनर्वास में संलग्न होने या फेफड़ों के स्वास्थ्य में सहायता करने वाली स्वस्थ आदतें अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।  स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बेहतर परामर्ष से आपके फेफड़ों की कार्यप्रणाली को बेहतर किया जा सकती है।

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     वायु प्रदूषण का प्रभाव

    पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ₂), और सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ₂) जैसे वायु प्रदूषकों के लगातार संपर्क से फेफड़ों में सूजन और क्षति हो सकती है।जिससे इसका खतरा बढ़ जाता है।
    लक्षणों का बढ़ना- खराब वायु गुणवत्ता सीओपीडी के गंभीर रूप को बढ़ावा दे सकती है। जिससे सांस फूलना, खांसी और घरघराहट जैसे लक्षण बिगड़ सकते हैं और अस्पताल में भर्ती होने की संख्या बढ़ सकती है।
    रोग प्रगति- वायु प्रदूषकों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से सीओपीडी रोगियों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में तेजी से गिरावट आती है। जिससे समय के साथ रोग अधिक गंभीर हो जाता है।
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    इलाज की दिशा में पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग की भूमिका

    प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश ने बताया की सीओपीडी के लक्षणों वाले मरीजों की पूरी शारीरिक जाॅच कर के बीमारी का निदान और चरण का सटीक मूल्यांकन किया जाता है। इसके लिये स्पायरोमेट्री, बाडी-प्लेथिस्मोग्राफी डिफ्यूजन स्टडी, फोस्र्ड आॅसिलोमेंट्री (एफओटी), हाई रिजोल्यूसन सीटी स्कैन जैसी अत्याधुनिक सुविधाये है जो बीमारी के शीध्र निदान में मदद करती है।

    निदान और चरण का सटीक मूल्यांकन

    हमारे केन्द्र में आधुनिक वेटींलेटर, वरिष्ठ विषेषज्ञ चिकित्सक एवं प्रषिक्षित नर्सिग स्टाफ से सुसज्जित उत्कृष्ट क्रिटिकल केयर यूनिट (आईसीयू) है। जो सीओपीडी के गम्भीर अटैक का त्वरित आपातकालीन इलाज प्रदान करने में सक्षम है। हम कड़े संक्रमष नियंत्रण प्रोटोकाल और आईसीयू स्वच्छता प्रथाओं का पालन करके वेंटिलेटर- सम्बद्ध निमोनिया (वैप) के जोखिम को 10ः से भी कम करने में सक्षम हुये है,जोकि एक उत्कृष्ट आकड़ा है।

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