रिपोर्ट – सिद्धार्थ जैन
जयपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय ने शहर की सडक़ों पर आवारा श्वानों द्वारा आए दिन राहगीरों को काटने के मामले में स्वायत्त शासन विभाग सहित ग्रेटर व हेरिटेज निगम से पूछा है कि श्वानों का रोड पर विचरण रोकने के लिए क्या किया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और न्यायाधीश मनीष शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश प्रकरण में लिए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि बध्याकरण से घटनाओं में कमी नहीं आती है। सरकार बताए कि ऐसे कौन से सेंटर हैं, जहां आवारा श्वानों को रखा जाता है। अदालत ने कहा की हम चाहते हैं कि आवारा श्वानों का वेलफेयर भी हो जाए और राहगीरों को भी ऐसी घटनाओं से मुक्ति मिले।
इस दौरान न्याय मित्र प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि आए दिन समाचार पत्रों में आवारा श्वानों के राहगीरों पर हमला करने की सूचना मिल रही हैं। शहर ऐसी घटनाओं की राजधानी बन गया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1997 में हाईकोर्ट ने सडक़ों को आवारा पशुओं से मुक्त करने को लेकर दिशा-निर्देश दिए थे, लेकिन उनकी भी पालना नहीं की जा रही है। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य सरकार और निगम से जवाब पेश करने को कहा है।
बताते चलें की 25 सितंबर, 2024 को उच्च न्यायालय ने आवारा श्वानों के हमलों के बढ़ते मामलों को देखते हुए स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लिया था। अदालत ने कहा था कि केरल में आवारा श्वानों से निजात दिलाने के लिए कानून बना है। ऐसे में राज्य सरकार को भी मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए। छोटे बच्चों सहित राह पर चलने वाले लोग इन आवारा श्वानों के शिकार हो रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।