जयपुर। राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रणेता, शिक्षाविद, संविधान सभा के सदस्य और स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती के अवसर पर शनिवार को जवाहर कला केन्द्र में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनके जीवन और कार्यों पर केंद्रित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई, साथ ही एक संगोष्ठी के माध्यम से उनके राष्ट्रनिर्माण में योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई।
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. मुखर्जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ताओं में शिक्षाविद एवं साहित्यकार डॉ. रवीन्द्र भारती, संस्कृतिकर्मी आत्माराम सिंघल उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद शर्मा ने किया।
जवाहर कला केन्द्र के सहायक निदेशक अब्दुल लतीफ उस्ता, उप महाप्रबंधक भरत सिंह एवं कंसल्टेंट प्रोग्रामिंग मैनेजर डॉ. चन्द्रदीप हाड़ा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए जेकेके के प्रकाशन भेंट किए।
राष्ट्र निर्माण में निभाई अग्रणी भूमिका
संगोष्ठी में डॉ. रवीन्द्र भारती ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने न केवल कानून के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि शिक्षाविद के रूप में भी उल्लेखनीय कार्य किया। मात्र 33 वर्ष की उम्र में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने और भारतीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दिया।
डॉ. मुखर्जी भारत की संविधान सभा के सदस्य भी रहे और स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री के रूप में उन्होंने कई दूरदर्शी निर्णय लिए। उन्होंने दिल्ली समझौते और अनुच्छेद 370 का दृढ़ विरोध करते हुए “एक विधान, एक निशान और एक प्रधान” का नारा बुलंद किया।
बलिदान और वैचारिक प्रतिबद्धता
संस्कृतिकर्मी आत्माराम सिंघल ने डॉ. मुखर्जी के जीवन के उस अध्याय को रेखांकित किया जब वे जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के विरोध में सत्याग्रह करते हुए सीमा पार गए और वहीं हिरासत में रहते हुए उनका निधन हो गया। उन्होंने बताया कि डॉ. मुखर्जी ने डॉ. हेडगेवार और वीर सावरकर जैसे राष्ट्रनायकों से संपर्क साधा और भारत की अखंडता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवा, विद्यार्थी, शिक्षक, संस्कृतिकर्मी और गणमान्य नागरिकों की भागीदारी रही। उपस्थित लोगों ने डॉ. मुखर्जी के विचारों और संघर्ष से प्रेरणा लेने का संकल्प लिया।