रिपोर्ट – सिद्धार्थ जैन
जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में आयोजित मल्हार महोत्सव के दूसरे दिन सुरों की बरसात ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। वर्षा ऋतु के रागों को समर्पित इस महोत्सव में गुरुवार को उस्ताद अनवर हुसैन के संतूर वादन और पं. कैलाश चंद्र मोठिया एवं योगेश चंद्र मोठिया की वायलिन व कैलाश रंजनी बेला की जुगलबंदी ने संगीतप्रेमियों को एक अद्भुत अनुभूति दी।
कार्यक्रम की शुरुआत उस्ताद अनवर हुसैन के संतूर वादन से हुई। उन्होंने राग किरवानी में आलापचारी, जोड़ और झाला प्रस्तुत कर श्रोताओं को शास्त्रीय संगीत की गहराइयों से जोड़ा। संतूर से निकली मधुर धुनों ने श्रोताओं के मन को छू लिया। इसके पश्चात उन्होंने विलंबित और द्रुत तीन ताल में रचना प्रस्तुत की। तबले पर दिनेश खींची ने सधी हुई संगत कर प्रस्तुति को प्रभावशाली बनाया।
इसके बाद मंच पर आई अनूठी जुगलबंदी—पं. कैलाश चंद्र मोठिया और उनके पुत्र योगेश चंद्र मोठिया की। इस पिता-पुत्र की जोड़ी ने राग मेघ में वायलिन और विशेष वाद्य कैलाश रंजनी बेला के माध्यम से लयकारी, तानकारी और भाव प्रस्तुति से श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं। कैलाश रंजनी बेला, पं. कैलाश मोठिया द्वारा स्वयं निर्मित एक विलक्षण वाद्य है, जिसने अपनी मधुरता से श्रोताओं को सुरमय अनुभव दिया।
संगत में मोहित कथक तबले पर और मनीष देवली नगाड़े पर अपने वादन से प्रस्तुति में ऊर्जा भरते रहे। अंत में राग भैरवी की मनमोहक प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ, जिसने वातावरण को शांति और भावनात्मक ऊँचाई से भर दिया।
शुक्रवार को परमेश्वर कथक की ताल वाद्य कचहरी और दिनेश परिहार की कथक संरचना भस्मासुर-मोहिनी की प्रस्तुति होगी, जिसकी सभी को प्रतीक्षा है।