कुछ ही सालों में मंदिर के भव्य निर्माण से जंगल में हो गया मंगल
लखनऊ। राजस्थान के जहाजपुर गांव में बना जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर तीर्थकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ का स्वस्तिक धाम मंदिर अपनी भव्यता से लोगों को आकर्षित कर रहा है। दिन प्रतिदिन मंदिर मंदिर में आने वाले भक्तों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। मंदिर का अतिशय लोगों की मनोकामनाओं को पूरा कर रहा है। यहां आने वाले भक्तगण भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा को देखकर भाव विभोर होते हैं। वह घंटों प्रतिमा को निहार कर अपनी आत्म शुद्धि करते हैं।
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वैसे देखा जाए तो इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। चमत्कारिक तरीके से घर से प्रकट होने के बाद कुछ ही वर्षों में एक भव्य मंदिर का रूप ले लिया। आर्यिका 105 स्वस्तिभूषण माता जी के निर्देशन में बने इस मंदिर को जहाज का रूप दिया गया है। इसलिए इस जगह का नाम जहाज मन्दिर पड़ गया।
स्वस्तिधाम (जहाजपुर मंदिर)का इतिहास
वर्ष 2013, तारीख 23 अप्रैल, दिन मंगलवार ,चैत्र का महीना, शुक्ल पक्ष, तेरस तिथि को महावीर जयंती के दिन जैन धर्म के 20 वें तीर्थकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ,यक्षिणी अपराजिता देवी एवं अन्य जिनबिम्बों सहित भूगर्भ से प्रकट हुये। एक माह पूर्व अष्टाहिन्का पर्व पर आर्यिका 105 स्वस्ति भूषण माताजी जहाजपुर पधारी थी। सिद्धचक्र विधान के समय माताजी ने कहा था की प्रतिमा निकलेगी। माताजी की वाणी सत्य सिद्ध हो गई। प्रतिमा प्रकट होते ही सारे गांव में हल्ला हो गया।
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सारा गांव इकट्ठा हो गया। प्रशासन भी आ गया। अतिशयकारी प्रभु को तहसील में ले जाने लगे पर जेसीबी बंद हो गई। जैसे ही भक्तों से कहा मन्दिर की तरफ ले चलो। वह चालू हो गई।भगवान ने भूगर्भ से निकलते ही अतिशय दिखाने प्रारंभ कर दिये। महावीर जयंती का जुलूस जेसीबी में झूलते हुये प्रभु और जय-जयकार करते भक्तों के द्वारा निकल रहा था। भूगर्भ से निकलते समय भगवान का रंग नीला था। कुछ समय बाद हरा ,स्लेटी और कुछ देर बाद काला हो गया।
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नाभि से दिव्य रोशनी निकलना
आर्यिका 105 स्वस्तिभूषण माताजी चातुर्मास के मंगल स्थापना 21 जुलाई 2013 के दिन नाभि से दिव्य रोशनी एवं नाभि स्पंदन हुआ, जिसे लाखों भक्तों ने देखा। वर्ष 18.6.2014 को मन्दिर से स्वस्तिधाम लाते समय 5 लोगों के द्वारा उठाये जाना एवं स्वस्तिधाम में आकर भारी होना तथा माताजी के पहुंचते ही पुन: हल्के होकर 5 लोगों के द्वारा वेदी में विराजमान होना। 26.07.2014 शनि अमावस्या को हजारों लोगों के सामने 5 मिनट तक आंख से दिव्य रोशनी का निकलना तथा 2 घंटे तक स्वयंमेव जलाभिषेक होना। भगवान का रंग काला, एवं अपराजिता देवी के निकलने से यह प्रतिमा मुनिसुव्रनाथ भगवान की ही है। यह पहचान हुई है। हजारों भक्तों पर अतिशय हुये, जो भक्तों ने आकर स्वयं बतायें।
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महाभारत काल का बताया गया
बनास नदी के तट पर बसा,अरावली पर्वत माला से घिरा यह जहाजपुर महाभारत काल से ही प्रसिद्ध रहा है। राजा परीक्षित को सर्प ने डस लिया। तब पुत्र राजा जन्म जेय ने सर्प की प्रजाति को नष्ट करने, नागदी नदी के किनारे नाग यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ से नाम यज्ञपुर पड़ गया। कालांतर में यज्ञपुर का जज्ञपुर और जज्ञपुर का जहाजपुर हो गया। ऐतिहासिक नगरी में समय-समय पर भूगर्भ से जिनबिम्बो का प्रगट होना इस बात का प्रतीक है।
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क्योकि प्राचीन काल में यह स्थान जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। दुरूह कालचक्र में विधर्मियों के आक्रमणों सेभक्तों के पुण्य से अतिशय कारी प्रभु अपना अतिशय दिखाने धरती से 351 अपराह्ने मात्र 4 वर्ष की अवधि में इस अतिशय क्षेत्र का निर्माण हुआ। अनुपम अद्वितीय पुरातत्व अतिशयकारी 1008 भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी की प्रतिमा को उच्च स्थान देने, एवं युगों-युगों तक संरक्षित करने का कार्य किया गया।
एक लाख वर्ग गज भूखण्ड में इस तीर्थ का निर्माण
त्रिलोकतीर्थ प्रणेता आचार्य 108 विद्याभूषणसन्मति सागर जी महाराज एवं सराकोद्धारक आर्चाय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं परम विदुषी लेखिका आर्यिका 105 श्री स्वस्तिभूषण माताजी की प्रेरणा एवं सान्निध्य में एक लाख वर्ग गज भूखण्ड में इस तीर्थ का निर्माण किया गया।
जिसमें जहाजपुर में जहाज की आकृति के मन्दिर का निर्माण किया तथा साथ ही मानस्तम्भ, यात्रीनिवास, तुष्टिपुष्टि,भोजनशाला, संतनिवास, आहारशाला आर्थिका भवन कार्यालय आदि का निर्माण किया गया। जहाज मन्दिर में सहस्त्र जिनालय, वर्तमान चौबीसी एवं अन्य वेदियों के जिनबिम्ब का पंचकल्याणक सराकोद्धारक आचार्य ज्ञानसागर जी एवं परम वंदनीया आर्यिका 105 श्री स्वस्तिभूषण माताजी ससंघ के सानिध्य में हुआ।
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31.01.2020 से 07.02.2020 तक होने वाले पंचकल्याणक में विविध देश विदेशों के गणमान्य श्रद्धालु उच्चाधिकारियों, नेताओं, मंत्रियों तथा जैन समाज के लक्ष्याधिक श्रावकों की उपस्थिति में सानन्द संपन्न हुआ। यह पावन मंगलकारी भगवान मुनिसुव्रतनाथ का दर्शन यहां आने वाले समस्त श्रद्धालु भक्तों के लिये स्वस्तिमय और कल्याणकारी सिद्ध हो रहा है,जो भविष्य में होता रहेगा।